जब तुम्हारी ज़ुबान के जहर बोलते हैं shayri
मेरी बेरुख़ी की वजह हो तुम
ऐसा लोग बोलते है
मुझे भी लगता है कुछ ऐसा
जब तुम्हारी ज़ुबान के ज़हर बोलते हैं...
उम्मीद से भरी है मेरी उम्र भी
अब उनपे है वो कब बोलते है
इंतज़ार अब मैं कितना करू?
जो एक आदत है उनकी भी
वो जब चाहे तब बोलते हैं...
उम्र भर का दर्द हो तुम
शायरी से मेरे शब्द बोलते है
मुझे भी लगता है कुछ ऐसा
जब तुम्हारी ज़ुबान के ज़हर बोलते हैं...
किसी नये की तलाश है तुम्हे
मैं नहीं ऐसा लोग बोलते है
मुझे भी लगता है कुछ ऐसा
जब तुम्हारी आवारगी के किस्से सुनते हैं...
निकाल दिया है दिल से
या सिर्फ ख़फ़ा हो मुझसे
तुम बदल गयी हो
ऐसा लोग बोलते है
मुझे भी लगता है कुछ ऐसा
जब तुम्हारी ज़ुबान के ज़हर बोलते हैं...
झूठी कसमें झूठे वादे करती हो तुम
मैं नहीं ऐसा लोग बोलते है
मुझे भी लगता है कुछ ऐसा
जब तुम्हारे अश्को के हुनर बोलते हैं...
मुझे भी लगता है कुछ ऐसा
जब तुम्हारी ज़ुबान के ज़हर बोलते हैं
मुझे भी लगता है कुछ ऐसा
जब तुम्हारी ज़ुबान के ज़हर बोलते हैं...
Writer- Vedant Patil (trueved)
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