मैं कैसे कहुँ
मैंने तुम्हें कितना चाहा हैं
मैंने तुम्हें कितना चाहा हैं
साँसें चले तब-तलक़,
हलकी सी मुस्कुराहट
आंखों में पानी की चमक
अश्क़ों की हिरे सी झलक
ये मैंने ग़ौर से जाना हैं
यार ये कोनसा क़ातिल पहनावा हैं,
मैं कैसे कहुँ
मैंने तुम्हें कितना चाहा हैं
साँसें चले तब-तलक़,
दिल के शहर में ख़ुदा माना हैं।
ये साँसें तुम्हारी माला जपती हैं
तुम्हें सुनाई कहा देता हैं
कानों में जो बसें है, कड़वे स्वर
जो मैंने कहे हैं
आज तलक़,
मैं कैसे कहुँ
मैंने तुम्हें कितना चाहा हैं
साँसें चले तब-तलक़,
दिल के शहर में ख़ुदा माना हैं।
Written by- Er.Vedant Patil.(trueved)
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मैं कैसे कहुँ
ReplyDeleteमैंने तुम्हें कितना चाहा हैं
साँसें चले तब-तलक़,
दिल के शहर में ख़ुदा माना हैं।
Bhaiii yeee dil ka shahar me or kon kon bastaa he...����
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Nice imagination bro
मैं ख़ुद वही खोजने का प्रयास कर रहा हूँ।
ReplyDeleteTrueved के साथ बने रहे,
धन्यवाद।
Sirji Dill bhi apkaa...
ReplyDeleteDill ka shehar bhi apkaa...
Ti Dill me basne walee bhi to aphii ke hee...
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Abb or ky khoj rahe hoo...
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Kahii humpee apkoo koi shak to nai...
Aane wala kal sukhdayi ho isliye dil ko ulzhaye rkhna kabhi kabhi aavshyak hota hai.isilye khoj jari hai.
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